chhath puja kyu manaya jata hai kahani | chhath puja kyu manaya jata hai

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chhath puja kyu manaya jata hai kahani:- छठ पूजा भारत के कई सारे राज्यों में मनाया जाने वाला एक प्रसिद्ध त्योहार है जो दिवाली के छठे दिन यानी की कार्तिक शुक्ल षष्ठी के दौरान मनाया जाता है। उत्तर प्रदेश, बिहार और झारखंड जैसे राज्यों में बड़े जोरों शोरों से लोग छठ पूजा को मनाते हैं। लेकिन कुछ ऐसी भी राज्य है जहाँ छठ पूजा के बारे में बहुत कम लोग जानते।

ऐसे मैं आपको बता दे की छट पूजा खासतौर पर सूर्य देवता की उपासना का पर्व है। इस दौरान भक्त 36 घंटे का व्रत रखते हैं। पूरणों के अनुसार छठ पूजा की शुरुआत रामायण के बाद से सुरू हो गई थी। अब ऐसा क्या हुआ था कि इस पूजा को शुरू किया गया? इसका क्या महत्त्व और वो कौन सी गलती है जो छठ पूजा के दौरान नहीं करनी चाहिए? चलिए जान लेते है |

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को रखती हैं। हालांकि कुछ पुरुष ऐसे भी हैं जो कि पूरे विधिविधान के साथ छठ पूजा का पालन करते हैं और व्रत रहते हैं। परंतु अधिकतर महिलाएं ही इस व्रत को रखते हुए नजर आएंगी। छठ पूजा के चार महत्वपूर्ण दिन होते हैं जिसमें पहला दिन होता है नहाय खाय। इ इस दिन सबसे पहले घर की सफाई करके उसे पवित्र किया जाता है, जिसके बाद व्रत रखने वाली महिलाएं स्नान करके अपने आप को पवित्र करती है।

स्नान करने के बाद वो शुद्ध और सात्विक भोजन करके व्रत की शुरुआत करते हैं। इस दिन चना दाल, लौकी की सब्जी रोटी के साथ खाई जाती है। पकाए खाने को सबसे पहले व्रत रखने वाली महिलाएं खाती है और उसके बाद घर के बाकी सदस्य खाते हैं और फिर दोस्तों आता है।

छठ पूजा का दूसरा दिन जिसे खरना कहते हैं इस दिन व्रत करने वाले व्यक्ति पूरे दिन का उपवास रखते है जिसमे ना हीं वो कुछ खाते है और ना ही कुछ पी सकते हैं। शाम के समय गुड़ वाली खीर प्रसाद के तौर पर बनाई जाती है। जैसे रसियावर खीर कहा जाता है और इसी खीर को पूजा करने के बाद व्रत रखने वाले लोग खाते हैं और उसी रात छठ मैया के लिए चासनी गेहूं का आटा और घी से बनाई मिठाई थेतुआ प्रसाद के तौर पर बनते हैं।

दोस्तों छठ पूजा का तीसरा दिन होता है संध्या अर्ध का ये तीसरा दिन छठ पूजा का मुख्य दिन है। इस दिन लोग निर्जल व्रत रखते हैं और फिर शाम में वो नदि या तालाब के पास इकट्ठा होकर। डूबते सूरज को नमस्कार करते हैं। जब लोग सूर्य देवता को अर्घ्य देने के लिए जा रहे होते है तभी उनका बेटा या घर का कोई एक पुरुष एक बांस की बनी हुई टोकरी लेकर आगे चल रहा होता है | chhath puja kyu manaya jata hai kahani hindi

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जिसे बहंगी कहते हैं इस बांस की टोकरी यानी की बहंगी में फल, प्रसाद और पूजा की बाकी सामग्री रखी जाती है। अब दोस्तों अगर हम छठ पूजा के चौथे दिन के बारे में बात करें तो इस दिन को उषा अर्ध कहा जाता है, जिसमें उगते सूरज की पूजा करते हैं। व्रत रखने वाले लोग अपने पूरे परिवार के साथ फिर से एक बार सूर्य देवता की पूजा करने के लिए नदि या तालाब के पास इकट्ठा होते हैं ताकि वो उगते ही सूरज की प्रार्थना कर सके।

छठ मैया को प्रसन्न करने के लिए उनके गीत गाते हैं और फिर अंत में व्रत रखने वाले लोग प्रसाद और कच्चे दूध के शरबत का सेवन करके अपने व्रत को तोड़ते हैं और इस तरह से पूरे 4 दिन के बाद छठ पूजा और उसके कठिन व्रत की समाप्ति होती है। पर दोस्तों छठ पूजा के दौरान कुछ खास बातों का ध्यान रखना होता है क्योंकि अगर कोई गलती हो गयी तो छठ माता नाराज हो जाती है |

छठ पूजा में क्या नहीं करना चाहिए

जिसमें सबसे पहली चीज़ तो ये है की अगर आपके घर में छठ पूजा हैं तो ध्यान रखें कोई भी सामान बच्चे ना छुएं क्योंकि अगर बच्चे बिना हाथ धोए गंदे गंदे हाथों सामान छू लेते है, अगर सामान को गंदे हाथों छू लिया तो उस सामान को दोबारा इस्तेमाल ना करें। पूजा में बनने वाला प्रसाद भी पहले नहीं देना चाहिए। इतना ही नहीं पूजा के दौरान घर में किसी को भी अभद्र भाषा का प्रयोग या फिर लड़ाई झगड़ा नहीं करना चाहिए।

इससे मन में नकारात्मक भावना आती है और दोस्तों के छठ के पर्व के दौरान पूरे दिनों तक व्रत रखने वाले व्यक्ति के साथ साथ पूरे परिवार को प्याज और लहसुन के साथ ही मांस, मच्छी वगैरह जैसे किसी भी चीज़ का सेवन नहीं करना चाहिए। छठ पूजा में साफ सफाई का विशेष ध्यान रखें। किसी भी चीज़ को बिना हाथ धोए ना छुएं। जो महिलाएं छठ मइया का व्रत रखती हैं वो पूरे 4 दिन पलंग या चारपाई पर भूलकर न सोएं।

दोस्तों सूर्यदेव को जल चढ़ाना इस व्रत का महत्त्व है। लेकिन ध्यान रखें जल चढ़ाने के लिए चांदी या प्लास्टिक के बर्तन का इस्तेमाल ना करे। छठ का प्रसाद बनाते समय व्रत रखने वाली महिलाओं को कुछ भी नहीं खाना चाहिए। और सबसे अहम बात ये है की प्रसाद ऐसी जगह पर बनाना चाहिए जहाँ रोज़मर्रा में खाना न बनता हो क्योंकि ये वाकई में बहुत परिश्रम वाला व्रत होता है जिसमें हर एक छोटी छोटी चीज़ का ध्यान रखा जाता है।

छठ का व्रत रखने वालों को मांस, मदिरा से दूर रखें। अगर वो या उनके घर में कोई भी इसका सेवन करता है तो छठ माता इससे नाराज होती है छठ पूजा के दिनों में फल नहीं खाना चाहिए। पूजा खत्म करने के बाद ही फलों का सेवन करना चाहिए। इन सारी बातों को सुनने के बाद आपको एक एक चीज़ का अंदाज़ा तो बखूबी हो गया होगा की छठ पूजा करना कितना कठिन है। इसका व्रत रखना उससे ज्यादा कठिन है, जिससे हर कोई नहीं कर पाता। लेकिन कोई भी इस व्रत को रखता है तो उसकी मनोकामनाएं पूरी होती है। छठ मैय्या उससे खुश हो जाती है और उसके जीवन में सुख समृद्धि आती है।

chhath puja में कोसी विधि
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छठ पूजा में कोसी भराई का भी विशेष महत्त्व होता है। कोसी भराई का क्या महत्त्व है और ये क्यों की जाती है? ऐसा कहा जाता है कि छठ पूजा में कोसी भरने की परंपरा को करने से व्रत करने वाली सभी महिलाओं को और उनके परिवार को सुख समृद्धि प्राप्त होती है। आपको बता दें की छठ पूजा में कोसी भरने को एक विधि के अनुसार करते हैं।

मान्यताओं के अनुसार छठ व्रत करने वाले पति पत्नी की अगर कोई मांगी हुई मनोकामना पूरी होती है तो इसकी खुशी में वो कोसी भरते हैं। आपको बता दें कि संध्या सूर्य को अर्घ देकर लोग अपने अपने घर में या छत पर कोसी भरने की परंपरा निभाते हैं। इसके लिए सबसे पहले मिट्टी के हाथी को सिंदूर लगाया जाता है। कुछ लोग 12 दीपक जलाते है या फिर 24 दीपक जलाते हैं। फिर कलश में मौसमी फल और ठेकुआ, सुथनी और अदरक आदि के साथ सारी सामग्री रखी जाती है। इसके बाद कोसी पर दीपक जलाया जाता है।

इसके बाद कोसी के चारों तरफ सूर्य को अर्घ्य देने वाली सामग्री से भरी सूप, डलिया और मिट्टी के ढक्कन में तांबे के पात्र को रखकर फिर दीपक जलाते हैं। आपको बता दें कि इसके बाद हवन की प्रक्रिया भी की जाती है। इसके बाद छठी मैया की पूजा की जाती है। इसके बाद इसी विधि के साथ अगले दिन की सुबह को कोसी भरी जाती है, जो घाट पर होती है। जब यह विधि की जाती है तो महिलाएं लोक गीत भी गाते हैं और अंत में मनोकामना पूर्ण होने के लिए छठी मैया को और सूर्यदेव को मन से आधार व्यक्त करती है। chhath puja kyu manaya jata hai kahani

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